All poetrys Bachpan For Her

For Her

क्या लिखूं मैं तुम्हें

जब देखा था तुम्हें पहली बार
तब सोचा था कि इनके बारे में कुछ तो लिखूंगा।

फिर अगले ही पल जब ग़ौर किया
तब दिमाग़ पर ज़ोर दिया।
आँखों से जब देखा तुम्हें
तो सोचा कि नूर पर लिखूंगा।
फिर जब बातें सुनी तो सोचा कि बातों पर लिखूंगा।
जब हृदय को जाना, तब सोचा कि नहीं, इनके तो हृदय पर लिखूंगा।
उफ़्फ़...

चांदनी

दूर छितिज से
मैं देख रहा था उसे
आसमां से उतरते
मैं देख रहा था उसे
बादलों के बीच से आते

मैं देख रहा था उसे
आसमां और धरती के बीच कि
उस अजीब सी दूरी को मांपते

आज फिर बारिश आई है

आज फिर...
आज फिर बारिश आई है
मिट्टी की वो सोंधी सी खुशबू भी
अपने साथ लाइ है
आज फिर बारिश आई है

सूखी सी थी घर की छत मेरी
उसपर ठंडी सी बौछार आई है
हाँ आज मौसम की पहली बरसात आई है

कितना अच्छा होता

अभी रात में किताबें पढ़े बिना
नींद नहीं आती
अगर किताबें तुम पढ़कर सुनातीं
तो कितना अच्छा होता

मैं जब थक कर
छाँव में बैठता
और वो छाँव
तुम्हारे दुपट्टे की होती
तो कितना अच्छा होता 

मैं लिखूंगा तुम्हारे बारे में

मैं लिखूंगा तुम्हारे बारे में
कुछ ऐसा लिखूंगा की
हर वो शख्स जो इसे पढ़ेगा
तुमसे मोहब्बत कर बैठेगा

वो जब भी उस खुदा की
इबादत में सर झुकाएगा
बस यही पूछेगा की
क्या खता हुई उससे
जो ऐसा प्यार नसीब न हुआ